डॉ. अनवर जमाल शुक्रिया ख़ासकर 'धन्यवाद' शब्द के लिए भी । किसी लेखक या कवि को उसके लेखन के लिए बधाई के अलावा जब धन्यवाद मिलता है और वह भी एक गम्भीर और शोधपरक लेखक से तो वाकई सार्थक लगता है वह लेखन । अच्छा लगा कि मस्तिष्क से उपजे चन्द विचार को आपने कविता समझा लेकिन मेरी ओर से वह कविता नहीं थी । धन्यवाद । टिप्पणी के बहाने आपके ब्लॉग पढ़े । इतने शोधपरक एवं सार्थक लेखन के लिए आपको भी बधाई और धन्यवाद दोनों । हालांकि उस पर तनिक विचार-वैभिन्न्य है मेरा, जो मुझे लगता है किसी भी पढ़नेवाले का विशेषाधिकार है और लिखनेवाले का भी, जिसका निश्चय ही सम्मान किया जाना चाहिए । हॉं, इससे निश्चय ही शोध की गम्भीरता और महत्ता पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । मैं नियमित और ख़ालिस ब्लॉगर नहीं हूँ इसलिए विलम्ब से आपको प्रत्युत्तर देने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। हालांकि टिप्पणी के बाद प्रतिक्रिया के लिए आपके लेखन को जानना समीचीन लगा मुझे । उम्मीद है इसी तरह आपके शोधपरक लेखन से रु-ब-रु होने का अवसर मिलता रहेगा ।
आत्मा कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। इसलिए,मनुष्य का अनुशासन ही परमात्मा है। अहं ब्रह्मास्मि इसी अर्थ में कहा गया है। जीवन का अनुशासन है-समयबद्धता अथवा समय का बोध। वैसे,अनुशासन एक प्रकार की कृत्रिमता है। थोड़ा केअरलेस होकर भी जिया जाए!
राधा रमण जी, आपका विचार पढ़कर सूझा कि 'मनुष्य का अनुशासन आत्मा है (यानी 'आत्म' को जान लेना, आत्मा ही हो जाना- मनुष्य का अनुशासन है) और आपके मत का पूरा सम्मान रखते हुए, मुझे लगता है कि आत्मा का भले ही भौतिक रूप से स्वतंत्र अस्तित्व न हो लेकिन आत्मा का ही तो स्वतंत्र अस्तित्व होता है- नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि..नैनं दहति पावक:......... न शोषयति मारुत: । शायद आप सहमत न हों, आपकी असमति भी सर ऑंखों पर । लेकिन इस सूझ को सुझाने के लिए धन्यवाद ।
.
जवाब देंहटाएं.
.
रोचक सुंदर कविता ।
धन्यवाद!
डॉ. अनवर जमाल शुक्रिया ख़ासकर 'धन्यवाद' शब्द के लिए भी । किसी लेखक या कवि को उसके लेखन के लिए बधाई के अलावा जब धन्यवाद मिलता है और वह भी एक गम्भीर और शोधपरक लेखक से तो वाकई सार्थक लगता है वह लेखन । अच्छा लगा कि मस्तिष्क से उपजे चन्द विचार को आपने कविता समझा लेकिन मेरी ओर से वह कविता नहीं थी । धन्यवाद । टिप्पणी के बहाने आपके ब्लॉग पढ़े । इतने शोधपरक एवं सार्थक लेखन के लिए आपको भी बधाई और धन्यवाद दोनों । हालांकि उस पर तनिक विचार-वैभिन्न्य है मेरा, जो मुझे लगता है किसी भी पढ़नेवाले का विशेषाधिकार है और लिखनेवाले का भी, जिसका निश्चय ही सम्मान किया जाना चाहिए । हॉं, इससे निश्चय ही शोध की गम्भीरता और महत्ता पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता ।
हटाएंमैं नियमित और ख़ालिस ब्लॉगर नहीं हूँ इसलिए विलम्ब से आपको प्रत्युत्तर देने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। हालांकि टिप्पणी के बाद प्रतिक्रिया के लिए आपके लेखन को जानना समीचीन लगा मुझे । उम्मीद है इसी तरह आपके शोधपरक लेखन से रु-ब-रु होने का अवसर मिलता रहेगा ।
आत्मा कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। इसलिए,मनुष्य का अनुशासन ही परमात्मा है। अहं ब्रह्मास्मि इसी अर्थ में कहा गया है। जीवन का अनुशासन है-समयबद्धता अथवा समय का बोध। वैसे,अनुशासन एक प्रकार की कृत्रिमता है। थोड़ा केअरलेस होकर भी जिया जाए!
जवाब देंहटाएंराधा रमण जी, आपका विचार पढ़कर सूझा कि 'मनुष्य का अनुशासन आत्मा है (यानी 'आत्म' को जान लेना, आत्मा ही हो जाना- मनुष्य का अनुशासन है) और आपके मत का पूरा सम्मान रखते हुए, मुझे लगता है कि आत्मा का भले ही भौतिक रूप से स्वतंत्र अस्तित्व न हो लेकिन आत्मा का ही तो स्वतंत्र अस्तित्व होता है- नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि..नैनं दहति पावक:......... न शोषयति मारुत: । शायद आप सहमत न हों, आपकी असमति भी सर ऑंखों पर । लेकिन इस सूझ को सुझाने के लिए धन्यवाद ।
हटाएं